पत्र अनजान पत्ते पर
सुनो जरा!
समय इतनी तेज़ी से बीत रहा है कि स्मृतियों को सहेज पाना कठिन होता जा रहा है। अभी-अभी वो समय बीता जिसका मैं तुमसे मिलने के बाद से इंतजार करता था और जिसका इंतजार करता था उसने मुझे बहुत पीछे खींच लिया. मेरी सुन्दर स्मृतियों को स्मृति शेष मे बदल दिया !
एक बार को तो सुंदर स्मृतियों को संजोया भी जा सकता है किन्तु वे स्मृतियाँ जिनके होने से व्यक्ति बेचैन रहे, पीड़ा में रहे; उनका क्या?
बड़ी ही अजीब मनोदशा में दिन कट रहा है। घड़ी की सुई टिक-टिक नहीं करती,चुभती है।हवाओं का छूना!ऐसा लग रहा जैसे कोई चुटि काट कर चला गया हो और उसकी चुटि से से शरीर पर निशान बन पड़ गए. हों।
ऊब चुका हूं कहते-कहते कि जीवन बोझिल हो गया है। हालांकि तुमसे कुछ-कुछ सीख पाया लेकिन तुम मुझे इतनी लेट मिली न की मैं तुमसे जो सीख पाया उसका उपयोग करने के लिए मेरे पास समय नहीं है.
तुम्हारा साथ मेरे लिए क्या था? इसका मूल्यांकन करना कितना मुश्किल है यह मैं ही जानता हूं या वह प्रेमी जो लगभग टूट चुका था और उसे आकर किसी प्रिय ने ऐसे संवारा जैसे मां संवार लेती है कमरे में बिखरी हरेक चीजों को बड़े ही सलीके से । जैसे बहन सम्भाल लेती है पिता के गुस्से को.
मैं किसी से तुम्हारी तुलना नहीं करना चाहता,
ना करूंगा। तुम्हारे लिए कोई उपमा भी नहीं खर्च करनी है मुझे।ना यह कहना है कि तुमने वो सब किया है जो एक प्रेमी को या प्रेमिका को करना चाहिए था।तुमने वो किया है जो तुम कर सकती थी और सिर्फ तुम ही कर सकती थी।
पिछले कुछ महीने ऐसे गुज़रे हैं जिन्हें याद करते भी डर लगता है। किन्तु स्मृतियां पीछा कहां छोड़ती हैं।
माँ वक्त बेवक्त याद आती हैं। उनकी मृत पड़ी देह छूने की हिम्मत नहीं कर सका था। ये सुन कर मैं बेसुध हो गया की माँ अब नहीं रही,कानों को ये सुनना मंजूर नहीं था.अब कोई ऐसा दिन नहीं गुजरता है जब उन्हें ज़ोर से गले लगाने का मन न होता हो,अब उनकी कमी हर कदम पर खलती है. उनको सोच कर आंसू खुद निकल आते है.तुम्हारा मुझसे दूर जाना मुझे पीछे की स्मृतियों में वापस ले गया.तुम थे तो,तुमको देख कर तुमको सुन कर तुमको कह कर अपने खाली पड़े मन को भरता था तुम्हारी बातों से, तुम्हारी भावना से.
मैं रोते-रोते इतना थक गया हूं कि अब आंखों में आसूं की जगह सिर्फ मलाल दिखता है। मलाल वो सब न कर पाने का जो माँ की नज़रों के सामने करना था या मैं जो कुछ करता माँ उसकी गवाह होती.
कितनी बहादुर हो तुम! ये मुझे अब पता चला क्योंकि टूटे हुए इंसान का तुमने हाथ पकड़ लिया था.कितनी आसानी से संभाल लिया था.मैं कभी कभी सोचता था कितना भाग्यशाली हू की भगवान ने मेरे पास तुमको भेज दिया कितनी आसानी से. बस यही आसानी ने मुझे तुम्हें समझने नहीं दिया,नहीं समझा तुमको शायद!
तुमने मुझ पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया था की तब ही मेरा समय मुझे मुझसे दूर ले गया, क्योंकि मैं तुममे मय हो जा चुका था.
सचमुच! संभालना!,संवारना और सृजन(S3) का काम स्त्रियों से बेहतर शायद ही कोई दुनिया में कर पाए। तुमने मुझे सम्भाल लिया था मैं खुद को रोज कुछ न कुछ संवार रहा था और खुद को नया सृजन दे रहा था.मैं नहीं कह पाया वो जो मुझे कहना था मैंने वो सब कहा जो मुझे नहीं कहना था. तुम्हारा दूर होना मुझे पागल इस कदर कर गया की जिसने इतना सम्मान करने वाले को अपमान दिया खैर मैंने अपने कर्मों की सजा पाई है, मुझे तुम्हारे जाने का अफसोस नहीं है क्योंकि तुम मेरे अन्दर से नहीं गए क्योंकि पहली बार की सारी चीजे याद रहती है सब को,और मुझे भी याद है.
खैर बहुत कुछ कहना है तुमसे। इतना कुछ कि मैं स्वयं ही असमंजस में हूं कि कहां से और कैसे कहूं? कह तो नहीं पाया बहुत कुछ तुम्हारे सामने तुम सुन लेते, बस सुन लेना ही भर तो होता है मेरी सारी बेचैनियों का एकमात्र उपाय।
जानती हो! बहुत भर गया हूँ।मन बोझिल हो गया है, मेरे अन्दर कड़वाहट और मृदुलता भर गयी शायद. सबकुछ एक जैसा लगने लगा है। धुँधला सा दिखता है सब। ऐसा लग रहा जैसे जीवन से रंग ही गायब हो गया है। तुम्हारी आँखों को देखकर महसूस होता है रंग बचे हैं दुनिया में और थोड़ा मुझमें भी।
तुम्हारी आँखें चूमना चाहता हूँ। छूकर देखना चाहता हूँ कि कैसी होती है वे आँखें जो किसी भी परिस्थिति में संबल प्रदान करने से नहीं चूकतीं। अपनी नज़रों की परिधि से मुझे ओझल मत होने देना। दुनिया में रंगों के होने का भ्रम उन्हीं नज़रों से है मुझे।
मुझे तुम्हारा इंतजार भले है लेकिन दिल कहता है तुम कभी न मिलों, क्योंकि मिलने से पहले मैं तुम्हारे लिए दुनिया का अनोखा उपहार था और खोने के बाद तुम्हारी अहमियत मैं समझ पाया लेकिन जिसके लिए और जो तुम्हारे लिए अच्छा हो वही रहो,क्योंकि तुम्हारी खुशी मुझसे दूर रहने में ही है ये जानने के बाद मैं तुम्हारी खुशी में खुश हू.
मुझे पता है तुम मेरे पतितपने से तंग आ चुके हों और मैं खुद को गिल्ट में रख कर लेकिन मुझे पता है की तुम्हारे सामने मैंने अपने स्वाभिमान को शुरू से तव्वजो नहीं दी थी इसलिए,
अंत में तुम्हारा कौन ?
जो तुम समझो
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