बारिश के रंग, खुद ही खुद के संग ♥️♥️
पटना की शाम और शाम की ये बारिश, कल तक जिस गर्मी से परेशान थे आज उसकी गर्मी शांत करने के बाद सुहाने मौसम से परेशान हो रहे थे.बारिश के इस मौसम में हाथों में कुछ किताबें लिए जीवन की तमाम फालतू बातों को मन में जमा कर सोच रहा था! जीवन का उद्देश्य क्या है,मैं क्या कर रहा हूं, मैं अपने आपको कोसते हुए आगे बढ़ रहा था,तभी नेपथ्य से भीगते हुए सामने आ कर खड़ी हो गयी एक संस्कारी कन्या को इस संसार मे देख कर मेरी निराशा की गहन कोठरी में उत्साह के नव नूपुर बज उठते हैं। निराशावादी चिंतन आशावादी चिंतन में तब्दील हो जाता है। बादल घुमड़ते है इधर मेरा मन भी. मन के आकाश में सौंदर्य के बादल घेरने लगते है।
रुप लावण्य देखकर मन में भरतनाट्यम हो ही रहा होता है,तब तक कन्या पूछ बैठी आज ही बारिश हुई न हमारे यहां तो दो दिन से ही रही थी,ये सुन कर समझ गया की ये कन्या पटना की नहीं है,शक्ल से काफी तैयार हो कर निकली हुई प्रतीत हो रहीं थीं,बारिश में भीगने के बाद भी मेकअप नहीं उतरा या मेकअप इतना ज़्यादा है कि बारिश भी उसका बाल बांका नहीं कर पायी शायद!
बालों को बड़े ही बाँकपन से संवारते हुए वो मेरे हाथों में क़िताबों को गौर से देखते हुए बोली PCS की तैयारी करते है क्या? मैंने उसे सिर्फ देखा और हू से ज्यादा कुछ न निकला मुँह से. फिर उसने किताब मांगते हुए कंहा दिखाइए गा. मैंने उतनी ही तेजी से उसे किताब दी जितनी तेजी से JIO का शायद 6G नेटवर्क काम करेगा."LIGHTENING FAST"
उनके चेहरे से टपकते सावन को भीतर तक महसूस करते हुए मैंने कहा आप क्या करते है,ये सवाल का ज़वाब देने मे उसने 2G की स्पीड दिखाई और मुझे लगा की मैंने COMPUTER मे INPUT डाला है अब OUTPUT भी कुछ आएगा ही.थोड़ी देर में MADAM का जबाव आया मैं B.E.D कर रही हू.
उसने किताब को देखने के दौरान 5 मिनट मे एक दर्जन बार बालो को सवारा. मुझे लग गया शायद इनके विद्यार्थि देश में कुछ करे न करे, देश से बाहर "MISS UNIVERSE TYPE" कुछ बन सकते है. खैर बारिश रुकी तो मैं निकलने लगा तो सुकन्या ने कहा
"स्टेशन तरफ जा रहे है क्या आप भी"
मैंने कहा नहीं... मुझे कंही नहीं जाना
“क्या मतलब है इसका ?”उसने कहा
“जी,कभी-कभी कहीं नहीं जाने के लिए भी कहीं जाना पड़ता है।”
मेरी बात सुनकर कन्या का चेहरा जीएसटी की तरह पेचीदा हो गया.अपने एक बाल को आँखों से हटाते हुए बोली क्या मतलब. मैं उसके इस तरह अचानक से FRIENDLY होने के मतलब को नहीं समझ पा रहा था. हालांकि मैंने अपना बचपन दिल्ली जैसे शहरो को देखते हुए काटा है लेकिन पटना में तो लड़की के साथ आप चलो तो अगल बगल वाले आपको ऐसे देखने लगेंगे जैसे आप उनकी गाय खोल कर ले जा रहे हो.
मैंने दबी जुबान से कहा "मैं तो आपको देखने के लिए रुका हुआ था" तभी वो जोर से हंसी
कन्या की हंसी से मेरे हाथ की किताब के सारे पन्ने फड़फड़ा रहे थे. उसने हंसते हुए बड़े ही आश्चर्य से मुझे देखा। मानों थार के मरुस्थल में किसी साइबेरियन पक्षी को देख रहीं हों।
उसकी इस अलोकतांत्रिक हंसी के कारण अगल बगल वाले की दिव्यदृष्टि मुझ पर पड़ रही थी. तभी मेरा मुंह चौड़ा हो जाता है और उससे निकलता है ठीक है निकलते हैं.
तब तक ऑटो आयी उसमे दो सीट खाली थी, मैडम ऑटो मे बैठी बगल में मैं भी बैठ गया. हालंकि हम दोनों एक दूसरे को जानते नहीं थे, लेकिन क्या है, न इस धरती पर दो ही चीज़ गज़ब की है एक लड़के की बेवकूफी और दूसरी लड़की का भोलापन.
थोड़ी देर में मोहतरमा का फोन बजा और slow slow बात करने मे वो व्यस्त हुई तो मैं ऑटो मे लगे झालर, लाइट को देखने लगा तो लगा की किसी क्लब मे बैठा हू और चारो तरफ से लाइट चमक रही हो, तब तक फोन कटा ही था की ऑटो वाले अंकल ने सड़क पर थूक कर स्वच्छ भारत का नारा बुलंद करते हुए,अपने मोबाइल की कनेक्ट करते हुए गाना बजाया ही था की
" फूल तुम्हें भेजा है ख़त में,फूल नहीं मेरा दिल है"
तुरंत सुकन्या ने कहा क्या अंकल ये कोई गाना है बजाना ही है तो ढंग का बजाइए, उसकी बातों से सहमत होते हुए बगल के लड़के ने कहा तो क्या दूसरा कौनो बजाइए न चाचा.
वो लड़का भी रील टाइप का लड़का, जिसने जीन्स पहनी थी या जिंस ने उसको पहना था समझ नहीं आ रहा था. गले में locket नहीं लग रहा था कुत्ते के गले मे पट्टा हो., लड़का मुँह में पुड़िया लिए हुए अंकल को गाना बदलने को कह रहा था, वो घूर घूर कर इस कन्या को देख रहा था उसे लग रहा था इस सुन्दर टाइप कन्या के साथ ये छछूंदर टाइप लड़का कैसे. उस लड़के ने दिमाग के सारे पुर्जे इसी चक्कर में खोल दिए होंगे की ये चौथू लड़के से ये लड़की कैसे पटी,लेकिन उस लड़के को कौन बताए कभी कभी स्लीपर का टिकट कटाने पर एसी मे टिकट अपग्रेड हो जाता है.
उस लड़के का ध्यान उस लड़की पर और मेरा ध्यान अब गाने पर
मेरा कलाकार मन कभी गीत की लाइनों को सुनता है तो कभी वाद्य यंत्रों के बेजोड़ संयोजन को। लेकिन सारा ध्यान ड्राइवर साहब खींच ले जातें हैं..
वो गेयर बदलते जातें हैं,गाने गुनगुनाते जातें हैं। गाने के प्रवाह और स्लेटर में तादात्म्य स्थापित होने लगता है। नायक कह रहा…
“प्यार छिपा है ख़त में इतना
जितने सागर में मोती
चूम ही लेता हाथ तुम्हारा
पास जो मेरे तुम होती”
मेरे बगल में बैठा लड़का साइड मिरर में अपने बालों को सहेजते हुए कहता है “कितना आउटडेटेड गाना है न मुझसे बोला "मैंने मौन धारण किया हुआ था
मैं भी सोच रहा..सच में, कितना आउटडेटेड है,रील्स और फूहड़ता के ज़मानें में तो इस गाने को संग्रहालय में धूल फाँकना था। एक साथ send to many वाले option पर click करने वाले इस स्मार्ट युग में तो इस गाने को सुनने पर भी म्यूजियम वाला टिकट लगना चाहिए, ऑटो वाले अंकल को इस गाने के लिए भी अलग से पैसा मिलना चाहिए शायद.
तभी गानें में नायिका गाई जा रही है..
“मिलना हो तो कैसे मिले हम
मिलने की सूरत लिख दो
नैन बिछाये बैठे हैं हम
कब आओगे ख़त लिख दो
फूल तुम्हें भेजा है ख़त में..”
मिलने के लिए जंहा oyo की सुविधा हो, जंहा पार्कों में खुलेआम भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रयोग करते हुए अपनी आजादी का प्रयोग करते हुए लोग मिल सकते हो.
जंहा इस 30 सेकंड में scroll करती दुनिया मे emotion भी scroll ही हो रहा है. जंहा तुरंत video call हो सकता हो वहां खत का क्या काम. हम जंहा उसके online न आने पर व्यग्र हो जाते है. वहां उस पुराने ज़मानें की नायिका में कितना अपार धैर्य था न ? आज नैन बिछाकर भला कौन बैठता..? उस जमाने की नायिका कह रही है कि कब आओगे ख़त लिख दो।, और यहां current location मांग कर नायक - नायिका एक दूसरे का कितना ख्याल रखते हैं ये बताते हैं.
मेरे बगल में बैठा लड़का पटना के ट्रैफिक लाइट की तरह कभी लाल तो कभी पीला तो कभी हरा हो रहा था उसे लग रहा था कि उसका तथाकथित BF यानी मैं न देख लू तो कभी वो उसे देखता तो कभी बाहर सड़कों को.
गाना खतम होने की और था और सफर भी,
“ख़त से जी भरता ही नहीं है..
नैन मिले तो चैन मिले…..”
जैसे ही ऑटो से उतरे मेरे बगल बैठे लड़के ने उतरने से पहले लड़की को देखा और फिर अफसोस भरी नजर से मुझे देखा. मैंने ऑटो वाले अंकल को भाड़ा दिया और गाना सुनाने के लिए धन्यवाद बोला! उन्होंने पूछा दो आदमी न मैंने कहा नहीं एक! अंकल से ज्यादा उस लड़के की आंखे मुझ पर टिकी रही.वो कुछ बोल पाता तब तक मैंने कहा सिंगल हू! तब तक वो लड़की कान में इयर फोन ठूँस कर,अंकल को phone pay करते हुए मुझे बाय बोलती हुई निकल गयी और इधर लड़का मुझसे कह रहा हैं भैया हम सोचे आप के साथ है और मुझे मन ही मन गाली देते हुए निकल गया.
और मैं ये सोचते हुए निकल गया की सिंगल होना इस सदी की सबसे बड़ी पीड़ा है या मिर्जापुर-3 मे मुन्ना भैया को न दिखाना.
खैर.
🖋️नीलेश सिंह
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