छठ एक एहसास

छठ त्यौहार नहीं एक एहसास

दशहरा,दिवाली तो है त्यौहार 
छठ पूजा है हर बिहारी का प्यार, 
सारे त्योहार शहर मे भी मना सकते है, 
दिल नहीं लगेगा अगर छठ मे नहीं पहुँचोगे घर,द्वार

         यह पर्व केवल पर्व नहीं एक एहसास है,छठ आस्था का ऐसा संगम है जंहा प्रकृति का हर रूप एक जगह जमा हो जाता है और जिसमें हम डुबकी लगाते है. छठ पूजा का पौराणिक कथाओं में अलग ही महत्व है                              सूर्य उपासना के महत्व की चर्चा
 महाभारत,रामायण,ब्रह्वर्तपुराण सभी में है.यह अकेली ऐसी पूजा है जहां डूबते सूरज को प्रणाम किया जाता है यह अपने आप में अनोखा है.
   छठ पूजा का प्रथम दिन नहाए खाए के साथ शुरू होता है और चौथे दिन उषा अर्ध्य के साथ यह पावन पर्व समाप्त होता है पुरानी मान्यताओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन है षष्ठी छठी मां,इस व्रत में इन्हीं दोनों का पूजन किया जाता है.छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की भी आराधना होती है.
प्रातः काल में सूर्य की पहली किरण और सांयकाल में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्युष् को अर्ध्य देकर दोनों को नमन किया जाता है.भारत में सूर्य उपासना ऋग्वेद काल से होती आ रही है, सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण,भागवत पुराण, ब्रह्मावर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है अगर छठ के सांसारिक और सामाजिक महत्व को समझना चाहे तो इस बात से समझ सकते है कि उगते सूरज को सब सलाम करते हैं पर एक यही व्रत है जिसमें शाम के ढलते सूरज को भी पूजा जाता है अगर हम इसको आज के दृष्टिकोण से सोचे तो जो आने वाला है अगर वह जरूरी है तो जिसने दिनभर हमें खुशियां प्रदान की और हमारा साथ दिया वह भी उतना ही पूजनीय है.छठ पूजा का महत्व जरा उनसे पूछिए जिनके घर यह महापर्व मनाया जाता है और इसके विपरीत उन लोगों का दर्द भी कम नहीं है जो छठ में घर नहीं पहुंच पाए शायद ही ऐसा कोई हो जिनके घर में छठ हो वो घर न पहुंचे. 


"केलवा जो फरेला धवद् से,ओ पर सुगा मंडराय"
इस गीत से छठ पर्व में साफ सफाई के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि तोते ने केले के पेड़ पर बैठकर चोंच से किस तरह उसे झूठा किया तो उसे सूर्य देव का कोप बनना पड़ा.नहाए खाए के साथ शुरू होने वाले सूर्य देव की उपासना के व्रत में क्या बच्चे और क्या बूढ़े सभी लोग अपने घर ही नहीं अपने आस-पड़ोस,अगल-बगल की सफाई में लग जाते हैं, साफ सफाई तो ऐसी मानो जैसे स्वर्ग धरती पर उतर आया हो.घर में महिलाएं और बच्चे सब अपने-अपने काम में मगन हो जाते हैं घर में मेहमानों की लाइन लग जाती है महिलाएं घर के मुखिया को कहती हैं "गेहूं सूखने दिए जी अब नहीं दीजिएगा तो कब दीजिएगा"छत पर गेहूं सूख रहा होता है और अगर गांव का चक्की भी धूल कर तैयार रहता है चक्की भी इस दिन अपने आप को गौरवांवित् महसूस करता है क्योंकि इससे जो पकवान तैयार होगा वह पकवान नहीं प्रसाद होगा उधर गांव के लोग अपने घर का कद्दू सब व्रती के घर पहुंचाते हैं ,उन लोगों को कोई मतलब नहीं है कि उनके यहां जो कद्दू है वह उनकी कमाई का जरिया हो सकता है,उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कद्दू का दाम आसमान छू रहा है,बाजार की बिगड़ी अर्थव्यवस्था में गांव में ऐसे लोग पर्व की व्यवस्था को बनाए रखते हैं,इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता डॉलर,रुपए के ऊपर नीचे होने से,इन्हे कोई मतलब नहीं शहर के झूठे चकाचोंध से.
   दूसरी तरफ शहर से आया हुआ लड़का नारियल खरीदते वक्त असमंजस में होता है कि कौन सा नारियल ठीक रहेगा, किसमें पानी है और किस में नहीं है यह सब कुछ इतना मनमोहक होता है जिसको शब्द से ब्यान नहीं किया जा सकता.भीड़-भाड़ के बावजूद मन शांत,पवित्र बना हुआ रहता है.दूसरी तरफ कोई ईख खरीद रहा होता है तो कोई सूप लेते वक्त अपनी गौत्नी से पूछ रही होती है कि कितना सुप,कितना डाला लगेगा,सूप जो बांस का होता है वह वंश वृद्धि का प्रतीक माना जाता है. पर्व में प्रयोग होने वाला पीतल और कांसा का बर्तन शरीर को ऊर्जावान बनाता है. 
उधर खरना का दूध गांव वाले चाचा फ्री में ही दे जाते हैं वो इस बात से बेफिक्र रहते है की इसी दूध को बेच कर शहर वाले आर्थिक व्यवस्था मे अपना योगदान दे रहे है. खरना के प्रसाद में मिला हुआ गुड हमारे रोम-रोम में ऐसी मिठास दे जाता है जो हमें पूरे साल की चाशनी नहीं दे पाती.कुल मिलाकर माहौल छठ मय और आनंदित रहता है.अर्थव्यवस्था के  इस दौर में महापर्व छठ की व्यवस्था भारी पड़ती है.छठ की व्यवस्था के कारण तो स्वच्छता के मामले में इंदौर हमारे आसपास भी नहीं ठहरता साफ-सफाई और गीत  नाद का ऐसा बेजोड़ संगम रहता है की जैसे लगता है कि साक्षात देवता घर आए  हो
"हम करेली छठ बरतिया से उनके  लागी"
 इस गीत से व्रती का वो रूप दिखता है जो अपने परिवार के लिए 36 घंटे से भी अधिक भूखे प्यासे रहकर कठिन तपस्या करके सबके लिए खुशियां मांगती हैं,यह सब बिना संयम और धैर्य के सम्भव नहीं है.व्रती का यह धैर्य हमे जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियों में संयम से काम लेने का ज्ञान देता है.उनका आशीर्वाद पाकर हमारे मन को एक अलग ही सुकून की अनुभूति मिलती है.
डूबते-उगते सूरज को अर्ध्य देने का,उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े होने का यह अद्भुत उदाहरण है.जो लोग घाट पर नहीं जा पाते वो व्रती के आने का इंतजार करते हैं और टकटकी लगाए रहते हैं.सुबह के अर्ध्य के समय साड़ी को नदी में धोकर आंचल से मुंह पोछने से एक अलग ही तेज की अनुभूति होती है. कॉपी और पेस्ट के दौर में भी छठ का प्रसाद हमारे सारे संबंधियों को पहुंच जाता है.घाट से आकर प्रसाद बांटने के सिलसिले के साथ ही हमारे मन को सुकून देकर यह महापर्व अगले साल फिर से धूमधाम से करने की अभिलाषा जगा जाता है जंहा यह कहा जाता है की जो उदय हुआ है वो अस्त भी होगा तो दूसरी और यह पर्व हमे निश्चिंत करता है की सब दिन तुम्हारा खराब नहीं होगा यह हमे सिखाता है "जो अस्त हुआ है वो उदय भी होगा" 
    _@ जय छठ माँ_ 

        ✒️ नीलेश सिंह
         पटना विश्वविद्यालय 

Comments

Popular posts from this blog

माँ के नाम पत्र

बारिश के रंग, खुद ही खुद के संग ♥️♥️