प्रेम
प्रेम की कोई परिभाषा नहीं बनी,सबकुछ आसपास ही घटित होता है। माँ से शुरू हो कर जीवन साथी तक इस प्यार एक उम्मीद बन कर जीवन को उन्मुक्त करती है.
प्रेम जितना किया जाता है उतना बाकी रहता है।
प्रेम टूटने से बचाता है। हार जाने से रोकता है!
प्रेम में आप उलझेंगे और निकल नहीं पाएंगे।
प्रेम मे आरोप लगाएँगे पर सजा न दे पाएंगे।
बोलेंगे बहुत कुछ पर कह कुछ न पाएंगे।
प्रेम विषय नहीं है, जिनको ऐसा लगता है कि समझ मे आ गया दरअसल वो उससे उतना ही दूर होता चला गया।
प्रेम जिया जाता है किया नही जाता।
प्रेम दुःख भी है और सुख भी.
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