माँ! 15 साल से ज्यादा हो गये, जब आपने हम सबसे विदा लिया. राम जी के वनवास से भी ज्यादा. डेढ़ दशक हो गए आपसे मिले, ये कैलेंडर कहता है मगर दिल कहता है डेढ़ लम्हा भी नहीं हुआ,जैसे आज अभी की ही बात हो.आज की यह तारीख़ मेरी ज़िंदगी के कैलेंडर से कोई डिलीट कर दे और बस यहीं सब कुछ रोक दे,दुर्गा पूजा का वो समय था जंहा सब लोगों अपने यहां भगवती को बुला रहे थे उस समय आप हमे छोड़ कर चले गए,वो समय आज भी सिहरन देता है उस समय मैं इतना तो नहीं समझ पाया था की आपका न रहना मुझे कितना प्रभावित करेगा उस समय तो मन में आया सब के साथ होता है मेरे साथ भी हुआ लेकिन आज केवल इतना नहीं है.आपका जाना संसार के सारे जीव का मुख मोड़ लेना था,मुझे emotion के स्तर पर इतना कमजोर कर गया आपका जाना की आज तक किसी का बेटा मात्र बोल जाना मुझे उसके माया जाल मे डाल कर अपने आप को भुला देता है. आपके जाने को मैं आज भी इंकार करता हूँ,क्योंकि आपका जाना सिर्फ जाना नहीं था मेरी सोच,मेरे सपनों का चले जाना हुआ क्योंकि मैंने जो सपने देखे थे वो आपकी आँखों से देखे थे और वो आपके...
छठ त्यौहार नहीं एक एहसास दशहरा,दिवाली तो है त्यौहार छठ पूजा है हर बिहारी का प्यार, सारे त्योहार शहर मे भी मना सकते है, दिल नहीं लगेगा अगर छठ मे नहीं पहुँचोगे घर,द्वार यह पर्व केवल पर्व नहीं एक एहसास है,छठ आस्था का ऐसा संगम है जंहा प्रकृति का हर रूप एक जगह जमा हो जाता है और जिसमें हम डुबकी लगाते है. छठ पूजा का पौराणिक कथाओं में अलग ही महत्व है सूर्य उपासना के महत्व की चर्चा महाभारत,रामायण,ब्रह्वर्तपुराण सभी में है.यह अकेली ऐसी पूजा है जहां डूबते सूरज को प्रणाम किया जाता है यह अपने आप में अनोखा है. छठ पूजा का प्रथम दिन नहाए खाए के साथ शुरू होता है और चौथे दिन उषा अर्ध्य के साथ यह पावन पर्व समाप्त होता है पुरानी मान्यताओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन है षष्ठी छठी मां,इस व्रत में इन्हीं दोनों का पूजन किया जाता है.छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की भी आराधना होती है. प्रातः काल में स...
पटना की शाम और शाम की ये बारिश, कल तक जिस गर्मी से परेशान थे आज उसकी गर्मी शांत करने के बाद सुहाने मौसम से परेशान हो रहे थे.बारिश के इस मौसम में हाथों में कुछ किताबें लिए जीवन की तमाम फालतू बातों को मन में जमा कर सोच रहा था! जीवन का उद्देश्य क्या है,मैं क्या कर रहा हूं, मैं अपने आपको कोसते हुए आगे बढ़ रहा था,तभी नेपथ्य से भीगते हुए सामने आ कर खड़ी हो गयी एक संस्कारी कन्या को इस संसार मे देख कर मेरी निराशा की गहन कोठरी में उत्साह के नव नूपुर बज उठते हैं। निराशावादी चिंतन आशावादी चिंतन में तब्दील हो जाता है। बादल घुमड़ते है इधर मेरा मन भी. मन के आकाश में सौंदर्य के बादल घेरने लगते है। रुप लावण्य देखकर मन में भरतनाट्यम हो ही रहा होता है,तब तक कन्या पूछ बैठी आज ही बारिश हुई न हमारे यहां तो दो दिन से ही रही थी,ये सुन कर समझ गया की ये कन्या पटना की नहीं है,शक्ल से काफी तैयार हो कर निकली हुई प्रतीत हो रहीं थीं,बारिश में भीगने के बाद भी मेकअप नहीं उतरा या मेकअप इतना ज़्यादा है कि बारिश भी उसका बाल बांका नहीं कर पायी शायद! बालों को बड़े ही बाँ...
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