मणिपुर

आज सुबह हमने अखबार उठाया
सुन कर कान को हमने अधीर पाया
हुआ क्षण गंभीर और मन घबराया
बहन के सामने आज फिर भाई को मजबूर पाया 

हटा ना तिमिर ना बदली काया 
उजाले में भी आज हमने अंधकार पाया 
शक्ति कह कर जिसे पूजते हम
उसे निःशक्त का आज फिर शिकार पाया 

माँ से जीवन,बहन की रक्षा का था प्रण खाया
पुत्र की जननी को भी अपने दूध पर लज्जित पाया
जो रखती बेटों, पतियों के लिए निर्जला व्रत
आज उसी की जिंदगी को हमने तार-तार पाया 

बोलते हम मर्द जिसे,उसकी मर्दानगी पर लानत आया 
इज़्ज़त कहते है जिसे आज हमने उसे सरे आम बनाया 
जिसे कहते दुर्गा काली, रक्षा करती खप्पर वाली 
आज उसे ही हमने अबला नारी बनाया 

कैसा हो गया खून हमारा, कैसा हमने संस्कार पाया 
पत्थरों में दर्द आया,झंझा मे आज झंकार पाया 
देख रहा था चक्र वाला भी आज त्रिलोक से 
दुशासन से द्रौपदी को नहीं बचा पाया

इंसान की खाल में हमने भेड़िया पाया
रक्षा करने वालों को भी भक्षक पाया
गलती की हमने निर्भया के वक़्त भी, 
क्यों न हमने दरिंदों को बीच चौराहे पर लटकाया 

दुर्गा को हमने क्यों दुर्ग मे छिपाया 
 नारी को हमने क्यों पर्दे मे छिपाया 
हमने मोमबत्ती जलाना सिखाया मौन रह कर 
क्यों नहीं रण चंडी से हमने तलवार उठवाया 


         ✒️  नीलेश सिंह

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