दिन

दिन अपने मैं कुछ यू गुजारता हूँ 
जैसे पिछले जन्म के कर्ज उतारता हूँ 
हुई होगी चूक,लोगों के दिल दिखाए होंगे मैंने 
गलती की सजा मिल रही मुझे,ये मैं मानता हूँ 
सोचा ऊपर वाले को ही अर्जी दु अपनी 
हटा कर मुझे बोला समझदार है ये इसे जानता हूं 
सोचा चलो अब खुद को ही सुना दु,तो आईना देखा 
आईना भी बोला इसको तो मैं पहले से पहचानता हूं 


   ✒️नीलेश सिंह 
   पटना विश्वविधालय

Comments

Popular posts from this blog

माँ के नाम पत्र

छठ एक एहसास

बारिश के रंग, खुद ही खुद के संग ♥️♥️