शक vs हक
कितना अच्छा लगा था जब उसने कंहा था की -
क्या कमी है मुझमे जो तुम उसे देखते हो
क्यूं करते हो उससे बात क्या मैं काफी नहीं तुम्हारे लिए.
आज हमने भी अपना हक जताया और कहा.
मत जाओ औरों के साथ घूमने फिरने तुम
उसने कहा मैं नहीं छोड़ सकती औरों को तुम्हारे लिए
उसके जवाब मेरे कानो मे गूंजते रहे
मुझे खुद को खुद का गुनाहगार कहते रहे
मैंने जिसे अपना हक माना
उसने उसे मेरा शक माना
दोस्त दोस्त कह कर वो दोस्ती का नाम खराब कर रहे थे
जिसकी नियत खराब दिख रही उसे क्यों नहीं वो ज़वाब दे रहे थे
इस कहानी में मेरा किरदार धुँधला था
मेरे तो सारे दाग उसे दिख जाते है क्योंकि,
मेरे शर्ट का रंग उजला था
मेरे पास खुशियो का भरा था एक थैला
आज उसने मेरी फिलिंग को जज्बातों से तोला
रही बात मेरे स्टेट्स मेरे औकात की,
चलो मैंने कुर्बानी दे दी अपने ज़ज्बात की
मुझे झुकाकर जीने मे अगर तुम्हारी शान है
माफ़ करना मेरी भी तो अपनी कोई पहचान है
मैंने भी अगर पैसा देख कर कुछ चुना होता,
जिसे तुमने ब्लॉक कराया उसे अपना कहा होता
मुझे भी अपनी गाड़ी से लोग ले जाना चाहते थे
हम सिर्फ तुम्हारे है ये महफिल को बताते थे
अगर ये थोड़ी देर की मस्ती का तुम्हें ध्यान है
मैंने जो तुम्हें अपना सब कुछ दिया क्या उसका कोई सम्मान है
लोग आज तुम्हारे साथ अपनी खुशियां मना रहे
जिसने तुम्हें ही अपनी खुशी माना उसे तुम अपनी गलती बता रहे
तुम्हारे साथ से लोग हमसे दूर होने लगे
जिसको हमने छोड़ा आज उसे तुम अपना कहने लगे
क्या बताऊँ यारो अपने दर्द की दास्ताँ
उसने आगाज किया वही दे अब अंजाम
उसकी गलतियों की भी सजा रब मुझे मिल जाए
पैसा उसको खूब मिले, सबके साथ वो घूमती रह जाए..
✒️ नीलेश सिंह
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