इतवार पर एतबार
कुछ ऐसा ही था मेरा इतवार!
मेरे इश्क के चर्चों से भर गया अखबार
घंटे,मिनट,सेकंड घड़ी की सुई सब थे मेरे साथ,
मेरा मोबाइल भी हो गया उस दिन बेरोजगार l
साथ थे मेरे वो,दिल मे सुकून था भरा
अनुभव हुआ जैसे छेड़ रहा कोई वीणा के तार l
थम गया जैसे सूरज जब वो मेरे साथ थे,
दूर हुए तो लगा जैसे लिया कलेजा निकाल l
काश ये मेरा सपना हो साकार..
साथ हमारा न छूटे यही रब से दुआ हमारी,
कर लू उसके लिए व्रत मंगलवार,सोमवार l
जान दे दूँगा उसके लिए ये सब हुई पुरानी बाते
संग बिताएंगे जीवन चाहे मुश्किलें आए हजार l
डरने लगे हैं उनकी दूर जाने की सोच इस कदर,
जैसे दीया खूब रोशन करता है फैलाने से पहले अंधकार l
बिखर न जाए मेरे सपने किसी तूफान के सामने,
मेरा हमसफ़र बदल न ले रास्ते देख कर तेज धार l
नीलेश सिंह
पटना विश्वविधालय
Comments
Post a Comment