बहुत लोग...
उनके आसपास बहुत चाहने वाले है
वो हमारा दर्द कंहा समझने वाले है
हम तो उनकी तमाम शर्तें मान बैठे
वो हमारी बात कंहा मानने वाले है I
खलल हो जाता है अगर उनको हमारी वजह से,
हम उनके लिए फोन बंद रखने वाले है
मेरी वफादारी ने मुझे गुनहगार बना दिया
हम तो खुद को इसकी सजा देने वाले है
ये दूरी, मजबूरी सब स्वीकार कर लेते है हम
हम तो उनके लिए पत्थर बनने वाले है
छोड़ देंगे वो किश्ती अगर तूफान आ गया तो
हम अपनी नाव खुद से डूबाने वाले है I
✒️ नीलेश सिंह
पटना विश्वविद्यालय
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