रिश्तों की मजबूती

ना हमे मगरूर, ना हम मजबूर
रिश्तों को निभाने का है हमारा दस्तूर
खो जाने से डरते हैं हम अपनों को
हमे रिश्तों के लिए नुकसान भी है मंजूर
ना हमे मगरूर, ना हम मजबूर

खो लिया बहुत, और खोना नहीं हमे मंजूर
रिश्तों की छेनी से गढ़े थे रिश्ते जो कल,
वो पत्थर ना हो जाए, सोचते है हुजूर!
ना हमे मगरूर, ना हम मजबूर

कर लिया अगर पसंद किसी को इसमे हमारा क्या कसूर, 
मान लिया पसंद उन्होंने ही किया था हमे, 
इश्क अगर है तो जताइए जरूर
ना हमे मगरूर, ना हम मजबूर

उनको नहीं होगी हमारी अहमियत तो ना सही, 
यारो की महफिल में हम भी है बड़े मशहूर
एहसास अगर लगने लगे एहसान की तरह,
रिश्तों के धागों को कैंची से रखिए दूर.

ना हमे मगरूर.....................

                                     नीलेश सिंह ✍️
                                पटना विश्वविद्यालय

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