न कंही दूर हो जाएं

इश्क में हम थक कर न कहीं चूर हो जाएं 
हम उनकी नजरों से न कंही दूर हो जाएं 
उन्हें खोने का डर हमे बहुत होता है मगर
हमारे बिछड़ने के किस्से न कंही मशहूर हो जाएं 
हम निभाते हैं रिश्ते उनकी ही शर्तों पर लेकिन
प्यार-वयार से नफरत करने को न कंही मजबूर हो जाएं 
हम चुप रहते हैं सुन कर उनके तीर प्यार के खातिर
उनकी जुबान को उनके शब्दों पर न कंही गुरूर हो जाएं 
मत निकाला कर नाजुक होठों से करकस बोली
 हमारे लिए खुदा के घर न कोई सजा मंजूर हो जाए.



                      ✒️ नीलेश सिंह

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