कितनी झूठी जिंदगी....
कितनी झूठी जिंदगी जी रहा हू मैं
दूसरों को हंसा कर रो रहा हू मैं
नहीं पता था कि लोग प्यार भी झूठा करते है
उस झूठे प्यार को अपनी तकदीर कह रहा हू मैं
वो किसी और के बातों में आ गए चुप चाप
जिसे अपना आईना समझ रहा हूं मैं
वो कह रहे थे न रह पाएंगे तेरे बिन
आज उनके बिन अकेला रो रहा हू मैं
वो गैरों के साथ घूम कर भी न बदनाम हुए
उनको सोच कर उन्हें बदनाम कर रहा हू मैं
वो चुप हो गए थे मेरे चुप कराने से कल
मुझे कौन चुप कराएगा ये अब सोच रहा हू मैं
काश मैं समझ पाता मौसम के मिजाज को,
गर्मियों में आज पंखा चला रहा हू मैं...
कल से गायब है तस्वीर उनके what's app से
वो delete हो गयी खुद को समझा रहा हू मैं
✒️ नीलेश सिंह
पटना विश्वविद्यालय
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