दर्द देने वाला हमदर्द
दर्द बांट नहीं सकता तो सिसकता हू मैं
बोल नहीं सकता तो लिखता हू मैं
तकलीफों से यारी तो पुरानी है मेरी
दुश्मनों से भी तो दोस्ती रखता हू मैं
आता होगा बहुतों को टीस देने मे मजा
गरम पानी से आजकल घाव धोता हूं मैं
वो औरों की तरह ही हमसे भी मिलते है,
उन्हें अपना समझकर भूलता हू मैं
बात करो तो वो काम पूछते है,
उनसे बात करने के लिए काम खोजता हू मैं
क्या हुआ अगर कोई हमे ना समझ पाया,
उनकी सोच को समझदार कहता हूं मैं
मिल लेते वो मेरा दिल ही रखने के लिए,
धड़कन के साथ जिनको दिल मे रखता हूं मैं I
✒️ नीलेश सिंह
पटना विश्वविद्यालय
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