शब्द सखा

इज्जत चली जाए वो दहलीज हम जाया नहीं करते
इश्क की बाजी मे शर्तें हम लगाया नहीं करते, 
बेवफाई की शर्तों से वो वाकिफ़ नहीं होंगे शायद, 
बिछड़ने के बाद हाल-ए -दिल हम बताया नहीं करते l
साजिश कर ली या हो गयी तुमसे, ये पता नहीं
नींद का नाटक करने वालों को हम जगाया नहीं करते l
 अपनों के लिए हम होंगे बेशकीमती, बेशक 
अनमोल चीजों की कीमत हम लगाया नहीं करते l
समझ जाएंगे मेरी बेजुबान को मेरे चाहने वाले खुद ब खुद 
 अपने दर्द का जिक्र जुबां पर हम लाया नहीं करते l
मेरे सब्र को मेरी कमजोरी कतई ना समझा जाए, 
बीते हुए लम्हों पर अफसोस हम जताया नहीं करते l
तुम अच्छे होगे किसी और की तस्वीरों मे शायद 
घरों मे  टूटे हुए शीशे हम लगाया नहीं करते l
जज्बातों से खेलने का हुनर तुम्हें बहुत खूब है मगर, 
 फरेबी से रिश्ता तो हम निभाया नहीं करते l
मेरी चुप्पी से मेरे लफ्जों को मत तौल लेना
गैरों की महफिल मे हम गुनगुनाया नहीं करते l


                        ✒️  Nilesh Singh
                                 Patna University

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