कविता

#sushantsingh 
क्या करू तू याद बहुत आता है 
बिन बोले रहा नहीं जाता है
तूने चाँद से आगे जाने की सोची थी लेकिन, 
सूरज की तरह तपने से नहीं,
सितारों के घर जन्म लेना पड़ता है
जून की गर्मी मे तेरे लिए आसमाँ भी रो प़डा लेकिन 
जमीन वाले की हैवानियत पर सोचना पड़ता है,
क्या कमी थी तेरी अदा,तेरी कलाकारी मे लेकिन, 
कला को जागीर समझने वालों के लिए सोचना पड़ता है
कलाकार तू बहुत उम्दा था ये जानते है हम लेकिन, 
ये कौन सा किरदार तुमने निभाया सोचना पड़ता है 
 रहा होगा कुछ ग्रह नक्षत्र का दोष भी तुम पर लेकिन, 
फ़िल्में शुक्रवार को ही क्यों निकले सोचना पड़ता है l



                          ✍️नीलेश सिंह

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