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इतवार

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कुछ ऐसा था मेरा इतवार  उगते सूरज ने दिया खुशियो का उपहार  मंदिर की घंटियों ने बताया संग बैठने का व्यवहार  घंटे, मिनट, सेकंड घड़ियां सब साथ थे बातें इतनी की मोबाइल भी हो गया आज बेरोजगार। साथ थे उनके तो सुकून था दिल में भरा अनुभव हुआ जैसे छेड़ रहा कोई वीणा के तार.  मिला प्यार, मिला अपनापन थी जिसकी भूख हमे  संग मिल खाया चावल, छोला और आचार  उनका होना कोने कोने का महसूस हो रहा था  साथ थे तो लगा जैसे उतर आया खुशियों का संसार। चाह ऐसी की घड़ी की टिक-टिक रुक जाए  साथ रहे वो आए न अब सोमवार। खुशियों से मन मचल रहा था जब वो साथ थे दूर हुए तो लगा जैसे लिया कलेजा निकाल। कुछ ऐसा था मेरा इतवार………. ✍️ नीलश सिंह पटना विश्वविद्यालय

मैं और मेरे जीवन में स्त्री विमर्श

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               सृष्टि की रचना में बहुत सारी बातों का ध्यान रखा गया होगा.प्रकृति हमेशा चेक एंड बैलेंस पर चलती है क्योंकि उसने पुरुष और स्त्री दोनों को पृथ्वी पर भेजा है,यानी दोनों कंही न कंही एक दूसरे के लिए बराबर जरूरी है.ये माँ-बाप,दादा-दादी,नाना-नानी,पति-पत्नि बहन-बहनोई,भाई-भाभी दोस्त वगैरह वगैरह ये रिश्ते कंही न कंही इंसान को मानसिक सुकून,इमोशन के स्तर पर ताकत देते होंगे, पुरुष और स्त्री दोनों एक दूसरे के पूरक होंगे लेकिन मैं शायद इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैंने जीवन के हर फेज को नहीं जिया है, मुझे इसका पर्याप्त अनुभव नहीं है हालांकि मैं उम्र से बड़ा हमेशा से बना रहा इसलिए अनुभव हुआ मुझे कुछ कुछ. मैं अपनी उम्र से आगे चलता रहा और ये मेरा शौक नहीं था ये मेरी मजबूरी थी.  क्योंकि जीवन में जब आप किसी रिश्ते यानी (माँ) को खो देते है न तब आप बिखर जाते है कहते है न     "भाई मरे बल घटे, बाप मरे छत जाए.     जिस दिन मरेगी माँ जग सूना कर जाए" . यानी संसार आपके लिए आंखे मूँद लेगा, अगर आपको कोई गले भी लगाएगा अपने...