इतवार
कुछ ऐसा था मेरा इतवार उगते सूरज ने दिया खुशियो का उपहार मंदिर की घंटियों ने बताया संग बैठने का व्यवहार घंटे, मिनट, सेकंड घड़ियां सब साथ थे बातें इतनी की मोबाइल भी हो गया आज बेरोजगार। साथ थे उनके तो सुकून था दिल में भरा अनुभव हुआ जैसे छेड़ रहा कोई वीणा के तार. मिला प्यार, मिला अपनापन थी जिसकी भूख हमे संग मिल खाया चावल, छोला और आचार उनका होना कोने कोने का महसूस हो रहा था साथ थे तो लगा जैसे उतर आया खुशियों का संसार। चाह ऐसी की घड़ी की टिक-टिक रुक जाए साथ रहे वो आए न अब सोमवार। खुशियों से मन मचल रहा था जब वो साथ थे दूर हुए तो लगा जैसे लिया कलेजा निकाल। कुछ ऐसा था मेरा इतवार………. ✍️ नीलश सिंह पटना विश्वविद्यालय